श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोरेवमन्तरं ज्ञानचक्षुषा।

भूतप्रकृतिमोक्षं च ये विदुर्यान्ति ते परम्।।13.35।।

 

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।13.35।।सारे अध्यायके अर्थका उपसंहार करनेके लिये यह श्लोक ( कहा जाता है ) --, जो पुरुष शास्त्र और आचार्यके उपदेशसे उत्पन्न आत्मसाक्षात्काररूप ज्ञाननेत्रोंद्वारा? पहले बतलाये हुए क्षेत्र और क्षेत्रज्ञके अन्तरको? -- उनकी पारस्परकि विलक्षणताको? इस पूर्वदर्शित प्रकारसे जान लेते हैं? और वैसे ही अव्यक्त नामक अविद्यारूप भूतोंकी प्रकृतिके मोक्षको? यानी उसका अभाव कर देनेको भी जानते हैं? वे परमार्थतत्त्वस्वरूप ब्रह्मको प्राप्त हो जाते हैं? पुनर्जन्म नहीं पाते।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।13.35।। --,क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोः यथाव्याख्यातयोः एवं यथाप्रदर्शितप्रकारेण अन्तरम् इतरेतरवैलक्षण्यविशेषं ज्ञानचक्षुषा शास्त्राचार्यप्रसादोपदेशजनितम् आत्मप्रत्ययिकं ज्ञानं चक्षुः? तेन ज्ञानचक्षुषा? भूतप्रकृतिमोक्षं च? भूतानां प्रकृतिः अविद्यालक्षणा अव्यक्ताख्या? तस्याः भूतप्रकृतेः मोक्षणम् अभावगमनं च ये विदुः विजानन्ति? यान्ति गच्छन्ति ते परं परमात्मतत्त्वं ब्रह्म? न पुनः देहं आददते इत्यर्थः।।इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यस्य श्रीगोविन्दभगवत्पूज्यपादशिष्यस्य,श्रीमच्छंकरभगवतः कृतौ श्रीमद्भगवद्गीताभाष्ये

त्रयोदशोऽध्यायः।।

श्रीमच्छंकरभगवत्पादविरचितम्

श्रीमद्भगवद्गीताभाष्यम्

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।13.35।।इस प्रकार जो ज्ञानरूपी नेत्रसे क्षेत्र और क्षेत्रज्ञके अन्तर-(विभाग-) को तथा कार्य-कारणसहित प्रकृतिसे स्वयंको अलग जानते हैं, वे परमात्माको प्राप्त हो जाते हैं।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।13.35।। इस प्रकार, जो पुरुष ज्ञानचक्षु के द्वारा क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के भेद को तथा प्रकृति के विकारों से मोक्ष को जानते हैं, वे परम ब्रह्म को प्राप्त होते हैं।।