श्री भगवानुवाच
इदं तु ते गुह्यतमं प्रवक्ष्याम्यनसूयवे।
ज्ञानं विज्ञानसहितं यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्।।9.1।।
श्रीमद् भगवद्गीता
।।9.1।।वहाँ (यह शङ्का होती है कि ) क्या इस प्रकार साधन करनेसे ही मोक्षप्राप्तिरूप फल मिलता है अन्य किसी प्रकारसे नहीं मिलता इस शङ्काको निवृत्त करनेकी इच्छासे श्रीभगवान् बोले --, जो ब्रह्मज्ञान आगे कहा जायगा और जो कि पूर्वके अध्यायोंमें भी कहा जा चुका है? उसको बुद्धिके सामने रखकर यहाँ इदम् शब्दका प्रयोग किया है। तु शब्द अन्यान्य ज्ञानोंसे इसे अलग करके विशेषतासे लक्ष्य करानेके लिये है। यही यथार्थ ज्ञान साक्षात् मोक्षप्राप्तिका साधन है। जो कि सब कुछ वासुदेव ही है आत्मा ही यह समस्त जगत् है ब्रह्म अद्वितीय एक ही है इत्यादि श्रुतिस्मृतियोंसे दिखलाया गया है? ( इसके अतिरिक्त ) और कोई ( मोक्षका साधन ) नहीं है। जो इससे विपरीत जानते हैं वे अपनेसे भिन्न अपना स्वामी माननेवाले मनुष्य विनाशशील लोकोंको प्राप्त होते हैं इत्यादि श्रुतियोंसे भी यही सिद्ध होता है। तुझ असूयारहित भक्तसे मैं यह अति गोपनीय विषय कहूँगा। वह क्या है ज्ञान। कैसा ज्ञान विज्ञानसहित अर्थात् अनुभवसहित ज्ञान। जिस ज्ञानको जानकर अर्थात् पाकर तू संसाररूप बन्धनसे मुक्त हो जायगा।
।।9.1।। -- इदं ब्रह्मज्ञानं वक्ष्यमाणम् उक्तं च पूर्वषु अध्यायेषु? तत् बुद्धौ संनिधीकृत्य इदम् इत्याह। तुशब्दो विशेषनिर्धारणार्थः। इदमेव तु सम्यग्ज्ञानं साक्षात् मोक्षप्राप्तिसाधनम् वासुदेवः सर्वमिति आत्मैवेदं सर्वम् (बृ0 उ0 2।4।6) एकमेवाद्वितीयम् (छा0 उ0 6।2।1) इत्यादिश्रुतिस्मृतिभ्यः नान्यत्? अथ ते येऽन्यथातो विदुः अन्यराजानः ते क्षय्यलोका भवन्ति इत्यादिश्रुतिभ्यश्च। ते तुभ्यं गुह्यतमं गोप्यतमं प्रवक्ष्यामि कथयिष्यामि अनसूयवे असूयारहिताय। किं तत् ज्ञानम्। किंविशिष्टम् विज्ञानसहितम् अनुभवयुक्तम्? यत् ज्ञात्वा प्राप्य मोक्ष्यसे अशुभात् संसारबन्धनात्।।त़ञ्च --,
।।9.1।। श्रीभगवान् बोले -- यह अत्यन्त गोपनीय विज्ञानसहित ज्ञान दोषदृष्टिरहित तेरे लिये तो मैं फिर अच्छी तरहसे कहूँगा, जिसको जानकर तू अशुभसे अर्थात् जन्म-मरणरूप संसारसे मुक्त हो जायगा।
।।9.1।। श्रीभगवान् ने कहा -- तुम अनसूयु (दोष दृष्टि रहित) के लिए मैं इस गुह्यतम ज्ञान को विज्ञान के सहित कहूँगा, जिसको जानकर तुम अशुभ (संसार बंधन) से मुक्त हो जाओगे।।