ASHTAVAKRA GITA

ASHTAVAKRA GITA


निर्वासनो निरालम्बः स्वच्छन्दो मुक्तबन्धनः।

क्षिप्तः संस्कारवातेन चेष्टते शुष्कपर्णवत्।।18.21।।