ASHTAVAKRA GITA

ASHTAVAKRA GITA


श्रोत्रियं देवतां तीर्थमङ्गनां भूपतिं प्रियम्।

दृष्ट्वा सम्पूज्य धीरस्य न कापि हृदि वासना।।18.54।।