ASHTAVAKRA GITA

ASHTAVAKRA GITA


जनक उवाच।

प्रकृत्या शून्यचित्तो यः प्रमादाद्भावभावनः।

निद्रितो बोधित इव क्षीणसंस्मरणो हि सः।।14.1।।