KAPILA GITA

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देवहूतिरुवाच

पुरुषं प्रकृतिं ब्रह्मन् न विमुञ्चति कर्हिचित्।

अन्योन्यापाश्रयत्वाच्च नित्यत्वादनयोः प्रभो।।2.14।।