SRIRAM GITA

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प्रकाशरूपोऽहमजोऽहमद्वयो

ऽसकृद्विभातोऽहमतीव निर्मलः।

विशुद्धविज्ञानघनो निरामयः

सम्पूर्ण आनन्दमयोऽहमक्रियः।।43।।