SRUTI GITA

SRUTI GITA


द्रुहिणवह्निरवीन्द्रमुखामरा

जगदिदं न भवेत्पृथगुत्थितम्।

बहुमुखैरपि मंत्रगणैरज

स्त्वमुरुमूर्तिरतो विनिगद्यसे।।3।।

[edit_node]