श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

अश्रद्धया हुतं दत्तं तपस्तप्तं कृतं च यत्।

असदित्युच्यते पार्थ न च तत्प्रेत्य नो इह।।17.28।।

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।17.28।।हे पार्थ ! अश्रद्धासे किया हुआ हवन, दिया हुआ दान और तपा हुआ तप तथा और भी जो,कुछ किया जाय, वह सब 'असत्' -- ऐसा कहा जाता है। उसका फल न यहाँ होता है, न मरनेके बाद ही होता है अर्थात् उसका कहीं भी सत् फल नहीं होता।