ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।
सङ्गात् संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते।।2.62।।
श्रीमद् भगवद्गीता
।।2.62।।इतना कहनेके उपरान्त अब यह पतनाभिमुख पुरुषके समस्त अनर्थोंका कारण बतलाया जाता है
विषयोंका ध्यान चिन्तन करनेवाले पुरुषकी अर्थात् शब्दादि विषयोंके भेदोंकी बारंबार आलोचना करनेवाले पुरुषकी उन विषयोंमें आसक्ति प्रीति उत्पन्न हो जाती है। आसक्तिसे कामना तृष्णा उत्पन्न होती है। कामसे अर्थात् किसी भी कारणवश विच्छिन्न हुई इच्छासे क्रोध उत्पन्न होता है।
।।2.62।।यत्तस्यापीति। यत् यस्मात् तस्यापि तपस्विनो मन इन्द्रियैः ह्रियते। अथवा यत्तस्य सयत्नस्यापि। योगिना च मन एव जेतव्यमिति द्वितीयो निर्णीतः।
।।2.62 -- 2.63।। विषयोंका चिन्तन करनेवाले मनुष्यकी उन विषयोंमें आसक्ति पैदा हो जाती है। आसक्तिसे कामना पैदा होती है। कामनासे क्रोध पैदा होता है। क्रोध होनेपर सम्मोह (मूढ़भाव) हो जाता है। सम्मोहसे स्मृति भ्रष्ट हो जाती है। स्मृति भ्रष्ट होनेपर बुद्धिका नाश हो जाता है। बुद्धिका नाश होनेपर मनुष्यका पतन हो जाता है।
।।2.62।। विषयों का चिन्तन करने वाले पुरुष की उसमें आसक्ति हो जाती है? आसक्ति से इच्छा और इच्छा से क्रोध उत्पन्न होता है।।
।।2.62।।
ध्यायतः चिन्तयतः विषयान् शब्दादीन् विषयविशेषान् आलोचयतः पुंसः पुरुषस्य सङ्गः आसक्तिः प्रीतिः तेषु विषयेषु उपजायते उत्पद्यते। सङ्गात् प्रीतेः संजायते समुत्पद्यते कामः तृष्णा। कामात् कुतश्चित् प्रतिहतात् क्रोधः अभिजायते।।