श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

अर्जुन उवाच

ज्यायसी चेत्कर्मणस्ते मता बुद्धिर्जनार्दन।

तत्किं कर्मणि घोरे मां नियोजयसि केशव।।3.1।।

 

English Commentary By Swami Sivananda



3.1 ज्यायसी superior, चेत् if, कर्मणः than action, ते by Thee, मता thought, बुद्धिः knowledge, जनार्दन O Janardana, तत् then, किम् why, कर्मणि in action, घोरे terrible, माम् me, नियोजयसि Thou engagest, केशव O Kesava.

Commentary:
In verses 49, 50 and 51 of chapter II, Lord Krsihna has spoken very highly about Buddhi Yoga. He again asks Arjuna to fight. That is the reason why Arjuna is perplexed now.

Hindi Commentary By Swami Chinmayananda

।।3.1।। अभी भी अर्जुन का यही विश्वास है कि गुरुजन पितामह आदि के साथ युद्ध करना भयानक कर्म है। लगता है अर्जुन या तो भगवान् के उपदेश को भूल गया है या वह उसे कभी समझ ही नहीं पाया था। श्रीकृष्ण ने यह बिल्कुल स्पष्ट किया था कि महाभारत के युद्ध में अर्जुन गुरुजनों को मारने वाला नहीं था क्योंकि यह युद्ध व्यक्तियों के बीच न होकर दो सिद्धांतों के मध्य था। पाण्डवों का पक्ष धर्म और नैतिकता का था। परन्तु दुर्भाग्यवश अर्जुन अपने अहंकार को भूलकर अपने पक्ष के साथ एकरूप नहीं हो पाया। जिस मात्रा में वह आदर्श के साथ तादात्म्य नहीं कर पाया उस मात्रा में उसका अहंकार बना रहा और युद्ध करने में उसे नैतिक दोष दिखाई दिया।इस श्लोक में अर्जुन का तात्पर्य यह है कि यद्यपि श्रीकृष्ण के तर्कसंन्यासमार्ग का ही अनुमोदन कर रहे थे परन्तु उसे भयंकर कर्म में प्रवृत्त किया जा रहा था।

English Translation By Swami Sivananda

3.1 Arjuna said If Thou thinkest that knowledge is superior to action, O Krishna, why then, O Kesava, dost Thou ask me to engage in this terrible action?