अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन्।
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय संभवाम्यात्ममायया।।4.6।।
श्रीमद् भगवद्गीता
4.6 अजः unborn, अपि also, सन् being, अव्ययात्मा of imperishable nature, भूतानाम् of beings, ईश्वरः the Lord, अपि also, सन् being, प्रकृतिम् Nature, स्वाम् My own, अधिष्ठाय governing, संभवामि come into being, आत्ममायया by My own Maya.
Commentary:
Man is bound by Karma. So he takes birth. He is under the clutches of Nature. He,is deluded by the three alities of Nature whereas the Lord has Maya under His perfect control. He rules over Nature, and so He is not under the thraldom of the alities o Nature. He appears to be born and embodied through His own Maya or illusory power, but is not so in reality. His embodiment is , as a matter of fact, apparent, It cannot affect in the least His true divine nature. (Cf.IX.8).
।।4.6।। परमेश्वर अपनी निर्बाध स्वतन्त्रता और पूर्ण स्वेच्छा से एक विशिष्ट देह को धारण करके जगत् में उस काल की मोहित पीढी का मार्गदर्शन करने आते हैं। अज्ञानी के समान देहादि के बन्धन में रहना उनके लिये वास्तविकता न होकर एक नाटक की भूमिका के समान है। र्मत्य जीव अविद्या का शिकार बनता है जबकि ईश्वर स्वमाया के स्वामी बने रहते हैं। कार का चालक कार से बंधा रहता है और उसका स्वामी स्वतन्त्र। वाहन का स्वामी अपने प्रयोजन के लिये वाहन का उपयोग करता है और गन्तव्य स्थान पर पहुँचने पर उसे छोड़कर अपने कार्य में व्यस्त हो जाता है। परन्तु बेचारा चालक चोर आदि लोगों से उसको सुरक्षित रखने के लिये एक सेवक के समान उस कार से बंधा रहता है। सृष्टि की रक्षा के खेल में भगवान् इन उपाधियों तथा तज्जनित परिच्छिन्नताओं को साधन रूप में स्वीकारते हैं किन्तु स्वयं उनके दास अथवा शिकार नहीं बन जाते।इस प्रकार स्वस्वरूप में अज और अविनाशी तथा प्राणिमात्र के ईश्वर होते हुये भी भगवान् अपनी माया को पूर्णत अपने वश में रखकर स्वेच्छा से जन्म लेते हैं जीव के समान पूर्व कर्मों के अवश्यंभावी फलों को भोगने के लिये नहीं। उन्हें न स्वस्वरूप का विस्मरण है और न माया का बन्धन है।आप अपने सेवक से स्कूटर में पेट्रोल भरवाकर लाने के लिये कहकर फिर उसे काम करते देखिये तो इस श्लोक में कथित अर्थ को आप समझ सकते हैं। स्कूटर के विषय में अनजान उस बेचारे के लिये वह भारी मशीन एक बोझ और दुख का कारण ही बन जाती है। स्कूटर के भार के कारण उसे खींचकर ले जाना कठिन होता है। इसके विपरीत यदि आप स्कूटर पर बैठकर उसे चला रहे हों अथवा उसे धक्का भी देना पड़े तो भी आप उसे सहर्ष और सरलता से ले जा सकते हैं। स्कूटर तो वही है परन्तु आपके हाथों में वह आपका दास है और अनुचर को तो वह स्वयं इधरउधर खींचकर ले जाने वाला भार है।इसी प्रकार अज्ञानी मनुष्य अपनी उपाधियों के कार्यों के विषय में कुछ नहीं जानता और इसलिये उनकी दास बना रहता है। ईश्वर के लिये जगत् कोई समस्या नहीं क्योंकि वे प्रकृति को सर्वथा अपने वश में रखते हैं। ईश्वर के पूर्ण स्वातन्त्र्य को इन दो पंक्तियों में अत्यन्त सुन्दर शैली में व्यक्त किया गया है।ईश्वर का यह जन्म कब और किसलिये होता है इस पर कहते हैं