श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

मृत्युः सर्वहरश्चाहमुद्भवश्च भविष्यताम्।

कीर्तिः श्रीर्वाक्च नारीणां स्मृतिर्मेधा धृतिः क्षमा।।10.34।।

 

Hindi Commentary By Swami Chinmayananda

।।10.34।। मैं सर्वभक्षक मृत्यु हूँ समानता की समर्थक मृत्यु? शासक के राजदण्ड और मुकुट को भी भिक्षु के भिक्षापात्र और दण्ड के स्तर तक ले आती है। प्रत्येक प्राणी केवल अपने जीवन काल में अनेक वस्तुओं और व्यक्तियों के संबंधों के द्वारा अपना एक भिन्न अस्तित्व बनाये रखता है। मृत्यु के पश्चात् विद्वान और मूढ़? पुण्यात्मा और पापात्मा? बलवान और दुर्बल? शासक और शासित ये सब धूलि में मिल जाते हैं? एक समानरूप बन जाते हैं जिनमें किसी प्रकार का भेद नहीं किया जा सकता।भविष्य में होने वालों का मैं उत्पत्ति कारण हूँ परमात्मा केवल सर्वभक्षक ही नहीं? सृष्टिकर्ता भी है। हम देख चुके हैं कि वस्तुत एक अवस्था के नाश के बिना अन्य अवस्था का जन्म नहीं हो सकता है। किसी पक्ष को ही देखना माने जीवन का एकांगी दर्शन करना ही हैं। वस्तु के नाश से शून्यता नहीं शेष रहती? वरन् अन्य वस्तु की उत्पत्ति होती है। समुद्र में उठती लहरों को अलगअलग देंखे ंतो सदा नाश ही होता दिखाई देगा? परन्तु एक के लय के साथ ही समुद्र में कितनी ही लहरें उत्पन्न होती रहती हैं? जिसका हमे ध्यान भी नहीं रहता है।इस सम्पूर्ण विवेचन का बल इसी पर है कि अनन्त परमात्मा अपने में ही रचना और संहार की क्रीड़ा निरन्तर कर रहा है जिस क्रीड़ा को हम विश्व कहते हैं।मैं स्त्रियों में कीर्ति? श्री? वाक्? स्मृति? मेधा? धृति और क्षमा हूँ ये सात देवताओं की स्त्रियां और स्त्रीवाचक नाम गुण के रूप में भी प्रसिद्ध हंै? इसलिए दोनों प्रकार से ही ये भगवान् की विभूतियां है? दार्शनिक दृष्टिकोण से इस कथन का अर्थ सब आलोचनाओं के परे है। यहाँ यह नहीं कहा गया है कि इन गुणों से सम्पन्न पुरुष दिव्य है। तात्पर्य यह है कि जिस किसी पुरुष में जिसका भूतकाल का जीवन कैसा भी हो जब कभी इनमें से किसी गुण के दर्शन होते हैं? तब हम उसके माध्यम से ईश्वर की विभूति के स्पष्ट दर्शन कर सकते हैं। गुण के प्रत्यारोपण की भाषा में भगवान् कहते हैं? स्त्रियों में मैं कीर्ति? श्री आदि गुण हूँ।अपने परिचय को और अधिक स्पष्ट करने के लिए अगले श्लोक में भगवान् श्रीकृष्ण चार और दृष्टान्त देते हैं

English Translation By Swami Gambirananda

10.34 And I am Death, the destroyer of all; and the prosperity of those destined to be prosperous. Of the feminine [Narinam may mean 'of the feminine alities'. According to Sridhara Swami and S., the words fame etc. signify the goddesses of the respective alities. According to M.S. these seven goddesses are the wives of the god Dharma.-Tr.] (I am) fame, beauty, speech, memory, intelligence, fortitude and forbearance.

English Translation By Swami Sivananda

10.34 And I am the all-devouring Death, and the prosperity of those who are to be prosperous; among the feminine alities (I am) fame, prosperity, speech, memory, intelligence, firmness and forgiveness.