अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम्।
यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यताः।।1.45।।
श्रीमद् भगवद्गीता
मूल श्लोकः
English Commentary By Swami Sivananda
1.45 अहो बत alas, महत् great, पापम् sin, कर्तुम् to do, व्यवसिताः prepared, वयम् we, यत् that, राज्यसुखलोभेन by the greed of pleasure of kingdom, हन्तुम् to kill, स्वजनम् kinsmen, उद्यताः prepared.
Commentary:
No Commentary.
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।1.45।। यह बड़े आश्चर्य और खेद की बात है कि हमलोग बड़ा भारी पाप करने का निश्चय कर बैठे हैं, जो कि राज्य और सुख के लोभ से अपने स्वजनों को मारने के लिये तैयार हो गये हैं!