मत्कर्मकृन्मत्परमो मद्भक्तः सङ्गवर्जितः।
निर्वैरः सर्वभूतेषु यः स मामेति पाण्डव।।11.55।।
श्रीमद् भगवद्गीता
मूल श्लोकः
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।11.55।। हे पाण्डवन ! जो मेरे लिये ही कर्म करनेवाला, मेरे ही परायण और मेरा ही भक्त है तथा सर्वथा आसक्तिरहित और प्राणिमात्रके साथ निर्वैर है, वह भक्त मेरेको प्राप्त होता है।