श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

पुरोधसां च मुख्यं मां विद्धि पार्थ बृहस्पतिम्।

सेनानीनामहं स्कन्दः सरसामस्मि सागरः।।10.24।।

 

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।10.24।। हे पार्थ ! पुरोहितोंमें मुख्य बृहस्पतिको मेरा स्वरूप समझो। सेनापतियोंमें स्कन्द और जलाशयोंमें समुद्र मैं हूँ।

Sanskrit Commentary By Sri Madhusudan Saraswati

।।10.24।।इन्द्रस्य सर्वराजश्रेष्ठत्वात्तत्पुरोधसं बृहस्पतिं सर्वेषां पुरोधसां राजपुरोहितानां मध्ये मुख्यं श्रेष्ठं मामेव हे पार्थं? विद्धि जानीहि। सेनानीनां सेनापतीनां मध्ये देवसेनापतिः स्कन्दो गुहोऽहमस्मि। सरसां देवखातजलाशयानां मध्ये सागरः सगरपुत्रैः खातो जलाशयोऽहमस्मि।

Sanskrit Commentary By Sri Vallabhacharya

।।10.24।।पुरोधसामिति। सरसां स्थिरजलाशयानां मध्ये सागरः।

Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas

।।10.24।। व्याख्या--'पुरोधसां च मुख्यं मां विद्धि पार्थ बृहस्पतिम्'--संसारके सम्पूर्ण पुरोहितोंमें और विद्या-बुद्धिमें बृहस्पति श्रेष्ठ हैं। ये इन्द्रके गुरु तथा देवताओंके कुलपुरोहित हैं। इसलिये भगवान्ने अर्जुनसे बृहस्पतिको अपनी विभूति जानने-(मानने-) के लिये कहा है।

   'सेनानीनामहं स्कन्दः'-- स्कन्द (कार्तिकेय) शंकरजीके पुत्र हैं। इनके छः मुख और बारह हाथ हैं। ये देवताओंके सेनापति हैं और संसारके सम्पूर्ण सेनापतियोंमें श्रेष्ठ हैं। इसलिये भगवान्ने इनको अपनी विभूति बताया है। 

'सरसामस्मि सागरः'--इस पृथ्वीपर जितने जलाशय हैं, उनमें समुद्र सबसे बड़ा है। समुद्र सम्पूर्ण जलाशयोंका अधिपति है और अपनी मर्यादामें रहनेवाला तथा गम्भीर है। इसलिये भगवान्ने इसको अपनी विभूति बताया है।यहाँ इन विभूतियोंकी जो अलौकिकता दीखती है, यह उनकी खुदकी नहीं है, प्रत्युत भगवान्की है और भगवान्से ही आयी है। अतः इनको देखनेपर भगवान्की ही स्मृति होनी चाहिये।

Sanskrit Commentary By Sri Dhanpati

।।10.24।।पुरोधसां राजपुरोहितानां इन्द्रपुरोहितत्वान्मुख्यं पुरोहितं बृहस्पतिं जानीहि। यता त्वं पार्थानां मुख्य इति सूचयन्नाह -- पार्थेति। सेनापतीनां कार्तिकेय देवसेनापतिः। सरसां देवखातजलाशयानां सागरोऽस्मि।

Sanskrit Commentary By Sri Neelkanth

।।10.24।।पुरोधसां पुरोहितानां बृहस्पतिं देवराजपुरोहितत्वात्। सेनानीनां सेनापतीनां स्कन्दः कार्तिकेयः। सरसां जलाशयानाम्।