श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

शुक्लकृष्णे गती ह्येते जगतः शाश्वते मते।

एकया यात्यनावृत्तिमन्ययाऽऽवर्तते पुनः।।8.26।।

 

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।8.26।। क्योंकि शुक्ल और कृष्ण -- ये दोनों गतियाँ अनादिकालसे जगत्-(प्राणिमात्र-) के साथ सम्बन्ध रखनेवाली मानी गई हैं। इनमेंसे एक गतिमें जानेवालेको लौटना नहीं पड़ता और दूसरी गतिमें जानेवालेको लौटना पड़ता है।

Sanskrit Commentary By Sri Madhusudan Saraswati

।।8.26।।उक्तौ मार्गावुपसंहरति -- शुक्ला अर्चिरादिगतिर्ज्ञानप्रकाशमयत्वात्। कृष्णा धूमादिगतिर्ज्ञानहीनत्वेन तमोमयत्वात्। ते एते शुक्लकृष्णे गती मार्गौ हि प्रसिद्धे सगुणविद्याकर्माधिकारिणोः जगतः सर्वस्यापि शास्त्रज्ञस्य शाश्वते अनादी मते संसारस्यानादि त्वात्। तयोरेकया शुक्लया यात्यनावृत्तिं कश्चित् अन्यया कृष्णया पुनरावर्तते सर्वोऽपि।

Sanskrit Commentary By Sri Vallabhacharya

।।8.26।।उक्तं मार्गद्वयमुपसंहरति -- शुक्लकृष्णे इति। शुक्लाऽर्चिरादिगतिः कृष्णा च धूमादिगतिः। उभयोः प्रकाशतमोमयत्वाद्भेदः।

Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas

।।8.26।। व्याख्या--'शुक्लकृष्णे गती ह्येते जगतः शाश्वते मते'--शुक्ल और कृष्ण--इन दोनों मार्गोंका सम्बन्ध जगत्के सभी चर-अचर प्राणियोंके साथ है। तात्पर्य है कि ऊर्ध्वगतिके साथ मनुष्यका तो साक्षात् सम्बन्ध है और चर-अचर प्राणियोंका परम्परासे सम्बन्ध है। कारण कि चर-अचर प्राणी क्रमसे अथवा भगवत्कृपासे कभी-न-कभी मनुष्य-जन्ममें आते ही हैं और मनुष्यजन्ममें किये हुए कर्मोंके अनुसार ही ऊर्ध्वगति, मध्यगति और अधोगति होती है। अब वे ऊर्ध्वगतिको प्राप्त करें अथवा न करें, पर उन सबका सम्बन्ध ऊर्ध्वगति अर्थात् शुक्ल और कृष्ण-गतिके साथ है ही।जबतक मनुष्योंके भीतर असत् (विनाशी) वस्तुओंका आदर है, कामना है, तबतक वे कितनी ही ऊँची भोग-भूमियोंमें क्यों न चले जायँ, पर असत् वस्तुका महत्त्व रहनेसे उनकी कभी भी अधोगति हो सकती है। इसी तरह परमात्माके अंश होनेसे उनकी कभी भी ऊर्ध्वगति हो सकती है। इसलिये साधकको हरदम सजग रहना चाहिये और अपने अन्तःकरणमें विनाशी वस्तुओंको महत्त्व नहीं देना चाहिये। तात्पर्य यह हुआ कि परमात्मप्राप्तिके लिये किसी भी लोकमें, योनिमें कोई बाधा नहीं है। इसका कारण यह है कि परमात्माके साथ किसी भी प्राणीका कभी सम्बन्ध-विच्छेद होता ही नहीं। अतः न जाने कब और किस योनिमें वह परमात्माकी तरफ चल दे-- इस दृष्टिसे साधकको किसी भी प्राणीको घृणाकी दृष्टिसे देखनेका अधिकार नहीं है।चौथे अध्यायके पहले श्लोकमें भगवान्ने 'योग' को अव्यय कहा है। जैसे योग अव्यय है, ऐसे ही ये शुक्ल और कृष्ण -- दोनों गतियाँ भी अव्यय, शाश्वत हैं अर्थात् ये दोनों गतियाँ निरन्तर रहनेवाली हैं, अनादिकालसे हैं और जगत्के लिये अनन्तकालतक चलती रहेंगी।

       'एकया यात्यनावृत्तिमन्ययावर्तते पुनः'--एक मार्गसे अर्थात् शुक्लमार्गसे गये हुए साधनपरायण साधक अनावृत्तिको प्राप्त होते हैं अर्थात् ब्रह्मलोकमें जाकर ब्रह्माजीके साथ ही मुक्त हो जाते हैं, बार-बार जन्म-मरणके चक्करमें नहीं आते; और दूसरे मार्गसे अर्थात् कृष्णमार्गसे गये हुए मनुष्य बार-बार जन्म-मरणके चक्करमें आते हैं।

 सम्बन्ध--अब भगवान् दोनों मार्गोंको जाननेका माहात्म्य बतानेके लिये आगेका श्लोक कहते हैं।

Sanskrit Commentary By Sri Dhanpati

।।8.26।।शुक्ला ज्ञानप्रकाशहेतुत्वात्तदभावात्कृष्णा। एते शुक्लकृष्णे गती मार्गो जगतः उपासनायां कर्मणि चाधिकृतस्य,शाश्वते नित्ये अनादिरुपे मते अभिप्रेते संसारस्यानादित्वात्। तत्रैकया शुक्लया गत्या अनावृत्तिं याति अन्यया कृष्णया गत्या पुनर्भूयः आवर्तते।

Sanskrit Commentary By Sri Neelkanth

।।8.26।।उक्तौ मार्गावुपसंहरति -- शुक्लेति। शुक्ला ज्ञानहेतुत्वादर्चिरादिगतिः तदभावात्कृष्णा धूमादिगतिः। एकया शुक्लया। अन्यया कृष्णया।