श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

तपाम्यहमहं वर्षं निगृह्णाम्युत्सृजामि च।

अमृतं चैव मृत्युश्च सदसच्चाहमर्जुन।।9.19।।

 

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।9.19।।तथा --, मैं ही सूर्य होकर अपनी कुछ प्रखर रश्मियोंसे सबको तपाता हूँ और कुछ किरणोंसे वर्षा करता हूँ तथा वर्षा कर चुकनेपर फिर कुछ रश्मियोंद्वारा आठ महीनेतक जलका शोषण करता रहता हूँ और वर्षाकाल आनेपर फिर बरसा देता हूँ। हे अर्जुन देवोंका अमृत और मर्त्यलोकमें बसनेवालोंकी मृत्यु तथा सत् और असत् सब मैं ही हूँ अर्थात् जो जिसके सम्बन्धसे विद्यमान है वह और जो उसके विपरीत है वह भी मैं ही हूँ। परंतु ( यह ध्यानमें रखना चाहिये कि ) स्वयं भगवान् अत्यन्त असत् नहीं हैं। अथवा सत् और असत्का अर्थ यहाँ कार्य और कारण समझना चाहिये। जो ज्ञानी पहले कहे हुए क्रमानुसार एकत्वपृथक्त्व आदि विज्ञानरूप यज्ञोंसे पूजन करते हुए मेरी उपासना करते हैं वे अपने विज्ञानानुसार मुझे ही प्राप्त होते हैं।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।9.19।। --,तपामि अहम् आदित्यो भूत्वा कैश्चित् रश्मिभिः उल्बणैः। अहं वर्षं कैश्चित् रश्मिभिः उत्सृजामि। उत्सृज्य पुनः निगृह्णामि कैश्चित् रश्मिभिः अष्टभिः मासैः पुनः उत्सृजामि प्रावृषि। अमृतं चैव देवानाम्? मृत्युश्च मर्त्यानाम्। सत् यस्य यत् संबन्धितया विद्यमानं तत्? तद्विपरीतम् असच्च एव अहम् अर्जुन। न पुनः अत्यन्तमेव असत् भगवान्? स्वयं कार्यकारणे वा सदसती।।ये पूर्वोक्तैः निवृत्तिप्रकारैः एकत्वपृथक्त्वादिविज्ञानैः यज्ञैः मां पूजयन्तः उपासते ज्ञानविदः? ते यथाविज्ञानं मामेव प्राप्नुवन्ति। ये पुनः अज्ञाः कामकामाः --,

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।9.19।। हे अर्जुन ! (संसारके हितके लिये) मैं ही सूर्यरूपसे तपता हूँ, जलको ग्रहण करता हूँ और फिर उस जलको वर्षारूपसे बरसा देता हूँ। (और तो क्या कहूँ) अमृत और मृत्यु तथा सत् और असत् भी मैं ही हूँ।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।9.19।। हे अर्जुन ! मैं ही (सूर्य रूप में) तपता हूँ; मैं वर्षा का निग्रह और उत्सर्जन करता हूँ। मैं ही अमृत और मृत्यु एवं सत् और असत् हूँ।।