श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

न मे विदुः सुरगणाः प्रभवं न महर्षयः।

अहमादिर्हि देवानां महर्षीणां च सर्वशः।।10.2।।

 

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।10.2।।मैं ( ऐसा ) किसलिये कहता हूँ सो बतलाते हैं --, ब्रह्मादि देवता मेरे प्रभवको यानी अतिशय प्रभुत्वशक्तिको अथवा प्रभव यानी मेरी उत्पत्तिको नहीं जानते और भृगु आदि महर्षि भी ( मेरे प्रभवको ) नहीं जानते। वे किस कारणसे नहीं जानते सो कहते हैं --,, क्योंकि देवोंका और महर्षियोंका सब प्रकारसे मैं ही आदि -- मूल कारण हूँ।

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Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।10.2।। --,न मे विदुः न जानन्ति सुरगणाः ब्रह्मादयः। किं ते न विदुः मम प्रभवं प्रभावं प्रभुशक्त्यतिशयम्? अथवा प्रभवं प्रभवनम् उत्पत्तिम्। नापि महर्षयः भृग्वादयः विदुः। कस्मात् ते न विदुरित्युच्यते -- अहम् आदिः कारणं हि यस्मात् देवानां महर्षीणां च सर्वशः सर्वप्रकारैः।।किञ्च --,

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।10.2।। मेरे प्रकट होनेको न देवता जानते हैं और न महर्षि; क्योंकि मैं सब प्रकारसे देवताओं और महर्षियोंका आदि हूँ।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।10.2।। मेरी उत्पत्ति (प्रभव) को न देवतागण जानते हैं और न महर्षिजन; क्योंकि मैं सब प्रकार से देवताओं और महर्षियों का भी आदिकारण हूँ।।