वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासवः।
इन्द्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना।।10.22।।
श्रीमद् भगवद्गीता
।।10.22।।मैं वेदोमें सामवेद हूँ? रुद्र? आदित्य आदि देवोंमें इन्द्र हूँ और चक्षु आदि एकादश इन्द्रियोंमें संकल्पविकल्पात्मक मन हूँ। सब प्राणियोंमें ( मैं ) चेतना हूँ। कार्यकरणके समुदायरूप शरीरमें सदा प्रकाशित रहनेवाली जो बुद्धिवृत्ति है? उसका नाम चेतना है।
।।10.22।। --,वेदानां मध्ये सामवेदः अस्मि। देवानां रुद्रादित्यादीनां वासवः इन्द्रः अस्मि। इन्द्रियाणाम् एकादशानां चक्षुरादीनां मनश्च अस्मि संकल्पविकल्पात्मकं मनश्चास्मि। भूतानाम् अस्मि चेतना कार्यकरणसंघाते नित्याभिव्यक्ता बुद्धिवृत्तिः चेतना।।
।।10.22।। मैं वेदोंमें सामवेद हूँ, देवताओंमें इन्द्र हूँ, इन्द्रियोंमें मन हूँ और प्राणियोंकी चेतना हूँ।
।।10.22।। मैं वेदों में सामवेद हूँ, देवों में वासव (इन्द्र) हूँ; मैं इन्द्रियों में मन और भूतप्राणियों में चेतना (ज्ञानशक्ति) हूँ।।