श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

ये तु धर्म्यामृतमिदं यथोक्तं पर्युपासते।

श्रद्दधाना मत्परमा भक्तास्तेऽतीव मे प्रियाः।।12.20।।

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।12.20।।समस्त तृष्णासे निवृत्त हुए? परमार्थज्ञाननिष्ठ अक्षरोपासक संन्यासियोंके अद्वेष्टा सर्वभूतानाम् इस श्लोकद्वारा प्रारम्भ किये हुए धर्मसमूहका उपसंहार किया जाता है --, जो संन्यासी इस धर्ममय अमृतको अर्थात् जो धर्मसे ओतप्रोत है और अमृतत्वका हेतु होनेसे अमृत भी है ऐसे इस अद्वेष्टा सर्वभूतानाम् इत्यादि श्लोकोंद्वारा ऊपर कहे हुए ( उपदेश ) का श्रद्धालु होकर सेवन करते हैं -- उसका अनुष्ठान करते हैं? वे मेरे परायण अर्थात् मैं अक्षरस्वरूप परमात्मा ही जिनकी निरतिशय गति हूँ ऐसे? यथार्थ ज्ञानरूप उत्तम भक्तिका अवलम्बन करनेवाले मेरे भक्त? मुझे अत्यन्त प्रिय हैं। प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थम् इस प्रकार जो विषय सूत्ररूपसे कहा गया था यहाँ उसकी व्याख्या करके भक्तास्तेऽतीव मे प्रियाः इस वचनसे उसका उपसंहार किया गया है। कहनेका अभिप्राय यह है कि इस यथोक्त धर्मयुक्त अमृतरूप उपदेशका अनुष्ठान करनेवाला मनुष्य मुझ साक्षात् परमेश्वर विष्णुभगवान्का अत्यन्त प्रिय हो जाता है? इसलिये विष्णुके प्यारे परमधामको प्राप्त करनेकी इच्छावाले मुमुक्षु पुरुषको इस धर्मयुक्त अमृतका यत्नपूर्वक अनुष्ठान करना चाहिये।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।12.20।। --,ये तु संन्यासिनः धर्म्यामृतं धर्मादनपेतं धर्म्यं च तत् अमृतं च तत्? अमृतत्वहेतुत्वात्? इदं यथोक्तम्? अद्वेष्टा सर्वभूतानाम् इत्यादिना पर्युपासते अनुतिष्ठन्ति श्रद्दधानाः सन्तः मत्परमाः यथोक्तः अहं अक्षरात्मा परमः निरतिशया गतिः येषां ते मत्परमाः? मद्भक्ताः च उत्तमां परमार्थज्ञानलक्षणां भक्तिमाश्रिताः? ते अतीव मे प्रियाः। प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थम् इति यत् सूचितं तत् व्याख्याय इह उपसंहृतम् भक्तास्तेऽतीव मे प्रियाः इति। यस्मात् धर्म्यामृतमिदं यथोक्तमनुतिष्ठन् भगवतः विष्णोः परमेश्वरस्य अतीव प्रियः भवति? तस्मात् इदं धर्म्यामृतं मुमुक्षुणा यत्नतः अनुष्ठेयं विष्णोः प्रियं परं धाम जिगमिषुणा इति वाक्यार्थः।।इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यस्य श्रीगोविन्दभगवत्पूज्यपादशिष्यस्य,श्रीमच्छंकरभगवतः कृतौ श्रीमद्भगवद्गीताभाष्ये

द्वादशोऽध्यायः।।

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।12.20।।जो मेरेमें श्रद्धा रखनेवाले और मेरे परायण हुए भक्त पहले कहे हुए इस धर्ममय अमृतका अच्छी तरहसे सेवन करते हैं, वे मुझे अत्यन्त प्रिय हैं।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।12.20।। जो भक्त श्रद्धावान् तथा मुझे ही परम लक्ष्य समझने वाले हैं और इस यथोक्त धर्ममय अमृत का अर्थात् धर्ममय जीवन का पालन करते हैं, वे मुझे अतिशय प्रिय हैं।।