श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

सत्त्वानुरूपा सर्वस्य श्रद्धा भवति भारत।

श्रद्धामयोऽयं पुरुषो यो यच्छ्रद्धः स एव सः।।17.3।।

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।17.3।।वह श्रद्धा इस तरह तीन प्रकारकी होती है --, हे भारत सभी प्राणियोंकी श्रद्धा ( उनके ) भिन्नभिन्न संस्कारोंसे युक्त अन्तःकरणके अनुरूप होती है। यदि ऐसा है तो उससे क्या होगा इसपर कहते हैं -- यह पुरुष अर्थात् संसारी जीव श्रद्धामय है क्योंकि जो जिस श्रद्धावाला है अर्थात् जिस जीवकी जैसी श्रद्धा है? वह स्वयं भी वही है? अर्थात् उस श्रद्धाके अनुरूप ही है।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।17.3।। --,सत्त्वानुरूपा विशिष्टसंस्कारोपेतान्तःकरणानुरूपा सर्वस्य प्राणिजातस्य श्रद्धा भवति भारत। यदि एवं ततः किं स्यादिति? उच्यते -- श्रद्धामयः अयं श्रद्धाप्रायः पुरुषः संसारी जीवः। कथम् यः यच्छ्रद्धः या श्रद्धा यस्य जीवस्य सः यच्छ्रद्धः स एव तच्छ्रद्धानुरूप एव सः जीवः।।ततश्च कार्येण लिङ्गेन देवादिपूजया सत्त्वादिनिष्ठा अनुमेया इत्याह --,

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।17.3।।हे भारत ! सभी मनुष्योंकी श्रद्धा अन्तःकरणके अनुरूप होती है। यह मनुष्य श्रद्धामय है। इसलिये जो जैसी श्रद्धावाला है, वही उसका स्वरूप है अर्थात् वही उसकी निष्ठा -- स्थिति है।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।17.3।। हे भारत सभी मनुष्यों की श्रद्धा उनके सत्त्व (स्वभाव, संस्कार) के अनुरूप होती है। यह पुरुष श्रद्धामय है, इसलिए जो पुरुष जिस श्रद्धा वाला है वह स्वयं भी वही है अर्थात् जैसी जिसकी श्रद्धा वैसा ही उसका स्वरूप होता है।।