श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

विषयेन्द्रियसंयोगाद्यत्तदग्रेऽमृतोपमम्।

परिणामे विषमिव तत्सुखं राजसं स्मृतम्।।18.38।।

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।18.38।।जो सुख विषय और इन्द्रियोंके संयोगसे उत्पन्न होता है? वह पहले -- प्रथम क्षणमें? अमृतके सदृश होता है? परंतु परिणाममें विषके समान है। अभिप्राय यह है कि बल? वीर्य? रूप? बुद्धि? मेधा? धन और उत्साहकी हानिका कारण होनेसे? तथा अधर्म और उससे उत्पन्न नरकादिका हेतु होनेसे? वह परिणाममें -- अपने उपभोगका अन्त होनेके पश्चात्? विषके सदृश होता है अतः ऐसा सुख राजस माना गया है।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।18.38।। --,विषयेन्द्रियसंयोगात् जायते यत् सुखम् तत् सुखम् अग्रे प्रथमक्षणे अमृतोपमम् अमृतसमम्? परिणामे विषमिव? बलवीर्यरूपप्रज्ञामेधाधनोत्साहहानिहेतुत्वात् अधर्मतज्जनितनरकादिहेतुत्वाच्च परिणामे तदुपभोगपरिणामान्ते विषमिव? तत् सुखं राजसं स्मृतम्।।

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।18.38।।जो सुख इन्द्रियों और विषयोंके संयोगसे आरम्भमें अमृतकी तरह और परिणाममें विषकी तरह होता है, वह सुख राजस कहा गया है।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।18.38।। जो सुख विषयों और इन्द्रियों के संयोग से उत्पन्न होता है, वह प्रथम तो अमृत के समान, परन्तु परिणाम में विष तुल्य होता है, वह सुख राजस कहा गया है।।