श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

तच्च संस्मृत्य संस्मृत्य रूपमत्यद्भुतं हरेः।

विस्मयो मे महान् राजन् हृष्यामि च पुनः पुनः।।18.77।।

 

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।18.77।।तथा हे राजन् हरिके उस अति अद्भुत विश्वरूपको भी बारम्बार याद करके? मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा है और मैं बारम्बार हर्षित हो रहा हूँ।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।18.77।। --,त़च्च संस्मृत्य संस्मृत्य रूपम् अत्यद्भुतं हरेः विश्वरूपं विस्मयो मे महान् राजन्? हृष्यामि च पुनः पुनः।।किं बहुना --,

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।18.77।।हे राजन् ! भगवान् श्रीकृष्णके उस अत्यन्त अद्भुत विराट्रूपको याद कर-करके मेरेको बड़ा भारी आश्चर्य हो रहा है और मैं बार-बार हर्षित हो रहा हूँ।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।18.77।। हे राजन ! श्री हरि के अति अद्भुत रूप को भी पुन: पुन: स्मरण करके मुझे महान् विस्मय होता है और मैं बारम्बार हर्षित हो रहा हूँ।।