श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

दूरेण ह्यवरं कर्म बुद्धियोगाद्धनञ्जय।

बुद्धौ शरणमन्विच्छ कृपणाः फलहेतवः।।2.49।।

 

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।2.49।।जो समत्वबुद्धिसे ईश्वराराधनार्थ किये जानेवाले कर्म हैं उनकी अपेक्षा ( सकाम कर्म निकृष्ट हैं यह दिखलाते हैं ) हे धनंजय बुद्धियोगकी अपेक्षा अर्थात् समत्वबुद्धिसे युक्त होकर किये जानेवाले कर्मोंकी अपेक्षा कर्मफल चाहनेवाले सकामी मनुष्योंद्वारा किये हुए कर्म जन्ममरण आदिके हेतु होनेके कारण अत्यन्त ही निकृष्ट हैं।
इसलिये तू योगविषयक बुद्धिमें या उसके परिपाकसे उत्पन्न होनेवाली सांख्यबुद्धिमें शरण आश्रय अर्थात् अभयप्राप्तिके हेतुको पानेकी इच्छा कर। अभिप्राय यह कि परमार्थज्ञानकी शरणमें जा।
क्योंकि फलतृष्णासे प्रेरित होकर सकाम कर्म करनेवाले कृपण हैं दीन हैं। श्रुतिमें भी कहा है

हे गार्गी जो इस अक्षर ब्रह्मको न जानकर इस लोकसे जाता है वह कृपण है।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।2.49।।

 दूरेण  अतिविप्रकर्षेण अत्यन्तमेव  हि अवरम्  अधमं निकृष्टं कर्म फलार्थिना क्रियमाणं  बुद्धियोगात्  समत्वबुद्धियुक्तात् कर्मणः जन्ममरणादिहेतुत्वात्। हे  धनञ्जय  यत एवं ततः योगविषयायां  बुद्धौ  तत्परिपाकजायां वा सांख्यबुद्धौ  शरणम्  आश्रयमभयप्राप्तिकारणम्  अन्विच्छ  प्रार्थयस्व परमार्थज्ञानशरणो भवेत्यर्थः। यतः अवरं कर्म कुर्वाणाः  कृपणाः  दीनाः  फलहेतवः  फलतृष्णाप्रयुक्ताः सन्तः यो वा एतदक्षरं गार्ग्यविदित्वास्माल्लोकात्प्रैति स कृपणः इति श्रुतेः।।
समत्वबुद्धियुक्तः सन् स्वधर्ममनुतिष्ठन् यत्फलं प्राप्नोति तच्छृणु

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।2.49।। बुद्धियोग-(समता) की अपेक्षा सकामकर्म दूरसे (अत्यन्त) ही निकृष्ट है। अतः हे धनञ्जय ! तू बुद्धि (समता) का आश्रय ले; क्योंकि फलके हेतु बननेवाले अत्यन्त दीन हैं।
 

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।2.49।। इस बुद्धियोग की तुलना में(सकाम) कर्म अत्यन्त निकृष्ट हैं? इसलिये हे धनंजय तुम बद्धि की शरण लो फल की इच्छा करनेवाले कृपण (दीन) हैं।।