श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।

धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।4.8।।

 

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।4.8।।किसलिये सत्मार्गमें स्थित साधुओंका परित्राण अर्थात् ( उनकी ) रक्षा करनेके के लिये पापकर्म करनेवाले दुष्टोंका नाश करनेके लिये और धर्मकी अच्छी प्रकार स्थापना करनेके लिये मैं युगयुगमें अर्थात् प्रत्येक युगमें प्रकट हुआ करता हूँ।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।4.8।। परित्राणाय परिरक्षणाय साधूनां सन्मार्गस्थानाम् विनाशाय च दुष्कृतां पापकारिणाम् किञ्च धर्मसंस्थापनार्थाय धर्मस्य सम्यक् स्थापनं तदर्थं संभवामि युगे युगे प्रतियुगम्।।तत्

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।4.8।। साधुओं-(भक्तों-) की रक्षा करनेके लिये, पापकर्म करनेवालोंका विनाश करनेके लिये और धर्मकी भलीभाँति स्थापना करनेके लिये मैं युग-युगमें प्रकट हुआ करता हूँ।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।4.8।। साधु पुरुषों के रक्षण,  दुष्कृत्य करने वालों के नाश,  तथा धर्म संस्थापना के लिये,  मैं प्रत्येक युग में प्रगट होता हूँ।।