श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

श्री भगवानुवाच

संन्यासः कर्मयोगश्च निःश्रेयसकरावुभौ।

तयोस्तु कर्मसंन्यासात्कर्मयोगो विशिष्यते।।5.2।।

 

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।5.2।।अर्जुनके प्रश्नका निर्णय करनेके लिये भगवान् अपना अभिप्राय बतलाते हुए बोले संन्यास कर्मोंका परित्याग और कर्मयोग उनका अनुष्ठान करना ये दोनों ही कल्याणकारक अर्थात् मुक्तिके देनेवाले हैं। यद्यपि ज्ञानकी उत्पत्तिमें हेतु होनेसे ये दोनोंही कल्याणकारक हैं तथापि कल्याणके उन दोनों कारणोंमें ज्ञानरहित केवल संन्यासकी अपेक्षा कर्मयोग श्रेष्ठ है। इस प्रकार भगवान् कर्मयोगकी स्तुति करते हैं।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।5.2।। संन्यासः कर्मणां परित्यागः कर्मयोगश्च तेषामनुष्ठानं तौ उभौ अपि निःश्रेयसकरौ मोक्षं कुर्वाते ज्ञानोत्पत्तिहेतुत्वेन। उभौ यद्यपि निःश्रेयसकरौ तथापि तयोस्तु निःश्रेयसहेत्वोः कर्मसंन्यासात् केवलात् कर्मयोगो विशिष्यते इति कर्मयोगं स्तौति।।कस्मात् इति आह

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।5.2।। श्रीभगवान् बोले -- संन्यास (सांख्ययोग) और कर्मयोग दोनों ही कल्याण करनेवाले हैं। परन्तु उन दोनोंमें भी कर्मसंन्यास- (सांख्ययोग-) से कर्मयोग श्रेष्ठ है।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।5.2।। श्रीभगवान् ने कहा --  कर्मसंन्यास और कर्मयोग ये दोनों ही परम कल्याणकारक हैं;  परन्तु उन दोनों में कर्मसंन्यास से कर्मयोग श्रेष्ठ है।।