श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

अधियज्ञः कथं कोऽत्र देहेऽस्मिन्मधुसूदन।

प्रयाणकाले च कथं ज्ञेयोऽसि नियतात्मभिः।।8.2।।

 

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।8.2।। ते ब्रह्म तद्विदुः कृत्स्नम् इत्यादि वचनोंसे ( पूर्वाध्यायमें ) भगवान्ने अर्जुनके लिये प्रश्नके बीजोंका उपदेश किया था अतः उन प्रश्नोंको पूछनेके लिये अर्जुन बोला --, हे पुरुषोत्तम वह ब्रह्मतत्त्व क्या है अध्यात्म क्या है कर्म क्या है अधिभूत किसको कहते हैं अधिदैव किसको कहते हैं हे मधुसूदन इस देहमें अधियज्ञ कौन है और कैसे है तथा संयतचित्तवाले योगियोंद्वारा आप मरणकालमें किस प्रकार जाने जा सकते हैं।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।8.1 -- 8.2।। --,ते ब्रह्म तद्विदुः कृत्स्नम् (गीता 7।29) इत्यादिना भगवता अर्जुनस्य प्रश्नबीजानि उपदिष्टानि। अतः तत्प्रश्नार्थम् अर्जुनः उवाच -- एषां प्रश्नानां यथाक्रमं निर्णयाय श्रीभगवानुवाच --,श्रीभगवानुवाच --,

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।8.1 -- 8.2।। अर्जुन बोले -- हे पुरुषोत्तम ! वह ब्रह्म क्या है? अध्यात्म क्या है? कर्म क्या है? अधिभूत किसको कहा गया है? और अधिदैव किसको कहा जाता है? यहाँ अधियज्ञ कौन है और वह इस देहमें कैसे है? हे मधूसूदन ! नियतात्मा (वशीभूत अन्तःकरणवाले) मनुष्यके द्वारा अन्तकालमें आप कैसे जाननेमें आते हैं?
 

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।8.2।। और हे मधुसूदन ! यहाँ अधियज्ञ कौन है? और वह इस शरीर में कैसे है? और संयत चित्त वाले पुरुषों द्वारा अन्त समय में आप किस प्रकार जाने जाते हैं,