श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

नैते सृती पार्थ जानन्योगी मुह्यति कश्चन।

तस्मात्सर्वेषु कालेषु योगयुक्तो भवार्जुन।।8.27।।

 

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।8.27।।हे पार्थ इन उपर्युक्त दोनों मार्गोंको इस प्रकार जाननेवाला कि एक पुनर्जन्मरूप संसारको देनेवाला है और दूसरा मोक्षका कारण है कोई भी योगी मोहित नहीं होता। इसलिये हे अर्जुन तू सब समय योगयुक्त हो अर्थात् समाधिस्थ हो।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।8.27।। --,न एते यथोक्ते सृती मार्गौ पार्थ जानन् संसाराय एका अन्या मोक्षाय इति योगीमुह्यति कश्चन कश्चिदपि। तस्मात् सर्वेषु कालेषु योगयुक्तः समाहितो भव अर्जुन।।शृणु तस्य योगस्य माहात्म्यम् --,

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।8.27।। हे पृथानन्दन  ! इन दोनों मार्गोंको जाननेवाला कोई भी योगी मोहित नहीं होता। अतः हे अर्जुन ! तू सब समयमें योगयुक्त हो जा।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।8.27।। हे पार्थ इन दो मार्गों को (तत्त्व से) जानने वाला कोई भी योगी मोहित नहीं होता। इसलिए, हे अर्जुन ! तुम सब काल में योगयुक्त बनो।।