श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।

मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायणः।।9.34।।

 

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।9.34।।किस प्रकार ( भजनसेवा करें सो कहा जाता है -- )

तू मन्मना -- मुझमें ही मनवाला हो। मद्भक्त -- मेरा ही भक्त हो। मद्याजी -- मेरा ही पूजन करनेवाला हो और मुझे ही नमस्कार किया कर। इस प्रकार चित्तको मुझमें लगाकर मेरे परायण -- शरण हुआ तू मुझ,परमेश्वरको ही प्राप्त हो जायगा। अभिप्राय यह कि मैं ही सब भूतोंका आत्मा और परमगति -- परम स्थान हूँ? ऐसा जो मैं आत्मरूप हूँ उसीको तू प्राप्त हो जायगा। इस प्रकार पहलेके माम् शब्दसे आत्मानम् शब्दका सम्बन्ध है।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।9.34।। --,मयि वासुदेवे मनः यस्य स त्वं मन्मनाः भव तथा मद्भक्तः भव मद्याजी मद्यजनशीलः भव। माम् एव च नमस्कुरु। माम् एव ईश्वरम् एष्यसि आगमिष्यसि युक्त्वा समाधाय चित्तम्। एवम् आत्मानम्? अहं हि सर्वेषां भूतानाम् आत्मा? परा च गतिः? परम् अयनम्? तं माम् एवंभूतम्? एष्यसि इति अतीतेन संबन्धः? मत्परायणः सन् इत्यर्थः।।इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यस्य श्रीगोवन्दभगवत्पूज्यपादशिष्यस्य,श्रीमच्छंकरभगवतः कृतौ श्रीमद्भगवद्गीताभाष्ये

नवमोऽध्यायः।।

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Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।9.34।। तू मेरा भक्त हो जा, मेरेमें मनवाला हो जा, मेरा पूजन करनेवाला हो जा और मेरेको नमस्कार कर। इस प्रकार मेरे साथ अपने-आपको लगाकर, मेरे परायण हुआ तू मेरेको ही प्राप्त होगा।

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Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।9.34।। (तुम) मुझमें स्थिर मन वाले बनो; मेरे भक्त और मेरे पूजन करने वाले बनो; मुझे नमस्कार करो; इस प्रकार मत्परायण (अर्थात् मैं ही जिसका परम लक्ष्य हूँ ऐसे) होकर आत्मा को मुझसे युक्त करके तुम मुझे ही प्राप्त होओगे।।