श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

किं कर्म किमकर्मेति कवयोऽप्यत्र मोहिताः।

तत्ते कर्म प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्।।4.16।।

 

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।4.16।।यदि कर्म ही कर्तव्य है तो मैं आपकी आज्ञासे ही करनेको तैयार हूँ फिर पूर्वैः पूर्वतरं कृतम् विशेषण देनेकी क्या आवश्यकता है इसपर कहते हैं कि कर्मके विषयमें बड़ी भारी विषमता है अर्थात् कर्मका विषय बड़ा गहन है। सो किस प्रकार कर्म क्या है और अकर्म क्या है इस कर्मादिके विषयमें बड़ेबड़े बुद्धिमान् भी मोहित हो चुके हैं इसलिये मैं तुझे वह कर्म और अकर्म बतलाऊँगा जिस कर्मादिको जानकर तू अशुभसे यानी संसारसे मुक्त हो जायगा।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।4.16।। किं कर्म किंअकर्म इति कवयः मेधाविनः अपि अत्र अस्मिन् कर्मादिविषये मोहिताः मोहं गताः। तत् अतः ते तुभ्यम् अहं कर्म अकर्म च प्रवक्ष्यामि यत् ज्ञात्वा विदित्वा कर्मादि मोक्ष्यसे अशुभात् संसारात्।।न चैतत्त्वया मन्तव्यम् कर्म नाम देहादिचेष्टा लोकप्रसिद्धम् अकर्म नाम तदक्रिया तूष्णीमासनम् किं तत्र बोद्धव्यम् इति। कस्मात् उच्यते

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।4.16।। कर्म क्या है और अकर्म क्या है -- इस प्रकार इस विषयमें विद्वान् भी मोहित हो जाते हैं। अतः वह कर्म-तत्त्व मैं तुम्हें भलीभाँति कहूँगा, जिसको जानकर तू अशुभ- (संसार-बन्धन-) से मुक्त हो जायगा।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।4.16।। कर्म क्या है और अकर्म क्या है? इस विषय में बुद्धिमान पुरुष भी भ्रमित हो जाते हैं। इसलिये मैं तुम्हें कर्म कहूँगा,  (अर्थात् कर्म और अकर्म का स्वरूप समझाऊँगा) जिसको जानकर तुम अशुभ (संसार बन्धन) से मुक्त हो जाओगे।।
 

English Translation By Swami Gambirananda

4.16 Even the intelligent are confounded as to what is action and what is inaction. I shall tell you of that action by knowing which you will become free from evil.