सञ्जय उवाच
तं तथा कृपयाऽविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम्।
विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः।।2.1।।
श्रीमद् भगवद्गीता
।।2.1।।संजय उवाच श्रीभगवानुवाच एवम् उपविष्टे पार्थे कुतः अयम् अस्थाने समुत्थितः शोक इति आक्षिप्य तम् इमं विषमस्थं शोकम् अविद्वत्सेवितं परलोकविरोधिनम् अकीर्तिकरम् अतिक्षुद्रं हृदयदौर्बल्यकृतं परित्यज्य युद्धाय उत्तिष्ठ इति श्रीभगवान् उवाच।
2.1 तम् to him, तथा thus, कृपया with pity, आविष्टम् overcome, अश्रुपूर्णाकुलेक्षणम् with eyes filled with tears and agitated, विषीदन्तम् despondent, इदम् this, वाक्यम् speech, उवाच spoke, मघुसूदनः Madhusudana.
Commentary:
No commentary.
।।2.1।। संजय बोले - वैसी कायरता से आविष्ट उन अर्जुन के प्रति, जो कि विषाद कर रहे हैं और आँसुओं के कारण जिनके नेत्रों की देखने की शक्ति अवरुद्ध हो रही है, भगवान् मधुसूदन ये (आगे कहे जानेवाले) वचन बोले।
2.1 Sri Sankaracharya did not comment on this sloka. The commentary starts from 2.10.