अर्जुन उवाच
मदनुग्रहाय परमं गुह्यमध्यात्मसंज्ञितम्।
यत्त्वयोक्तं वचस्तेन मोहोऽयं विगतो मम।।11.1।।
श्रीमद् भगवद्गीता
मूल श्लोकः
Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya
।।11.1।। --,मदनुग्रहाय ममानुग्रहार्थं परमं निरतिशयं गुह्यं गोप्यम् अध्यात्मसंज्ञितम् आत्मानात्मविवेकविषयं यत् त्वया उक्तं वचः वाक्यं तेन ते वचसा मोहः अयं विगतः मम? अविवेकबुद्धिः अपगता इत्यर्थः।।किञ्च --,
Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka
।।11.1।।( पूर्वाध्यायमें जो ) भगवान्की विभूतियोंका वर्णन किया गया है उसमें भगवान्से कहे हुए मैं इस सारे जगत्को एक अंशसे व्याप्त करके स्थित हूँ इन वचनोंको सुनकर ईश्वरका जो जगदात्मक आदि स्वरूप है उसका प्रत्यक्ष दर्शन करनेकी इच्छासे अर्जुन बोला --, मुझपर अनुग्रह करनेके लिये आपने जो परम -- अत्यन्त श्रेष्ठ? गुह्य -- गोपनीय? अध्यात्य नामक अर्थात् आत्माअनात्माके विवेचनविषयक वाक्य कहे हैं? उन आपके वचनोंसे मेरा यह मोह नष्ट हो गया है अर्थात् मेरी अविवेकबुद्धि नष्ट हो गयी है।
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