दिवि सूर्यसहस्रस्य भवेद्युगपदुत्थिता।
यदि भाः सदृशी सा स्याद्भासस्तस्य महात्मनः।।11.12।।
श्रीमद् भगवद्गीता
मूल श्लोकः
Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya
।।11.12।। --,दिवि अन्तरिक्षे तृतीयस्यां वा दिवि सूर्याणां सहस्रं सूर्यसहस्रं तस्य युगपदुत्थितस्य सूर्यसहस्रस्य या युगपदुत्थिता भाः? सा यदि? सदृशी स्यात् तस्य महात्मनः विश्वरूपस्यैव भासः। यदि वा न स्यात्? ततः विश्वरूपस्यैव भाः अतिरिच्यते इत्यभिप्रायः।।किञ्च --,
Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka
।।11.12।।भगवान्के विराट्रूपकी जो प्रभा -- प्रकाश है? उसकी उपमा कहते हैं --, द्युलोकमें अर्थात् आकाशमें या तीसरे स्वर्गलोकमें एक साथ उदय हुए हजारों सूर्योंका जो एक साथ उत्पन्न हुआ प्रकाश हो? वह प्रकाश उस महात्मन् -- विश्वरूपके प्रकाशके सदृश कदाचित् हो तो हो? अथवा सम्भव है कि न भी हो अर्थात् उससे भी विश्वरूपका प्रकाश ही अधिक हो सकता है।