इहैकस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम्।
मम देहे गुडाकेश यच्चान्यद्द्रष्टुमिच्छसि।।11.7।।
श्रीमद् भगवद्गीता
मूल श्लोकः
Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya
।।11.7।। -- इह एकस्थम् एकस्मिन्नेव स्थितं जगत् कृत्स्नं समस्तं पश्य अद्य इदानीं सचराचरं सह चरेण अचरेण च वर्तते मम देहे गुडाकेश। यच्च अन्यत् जयपराजयादि? यत् शङ्कसे? यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयुः (गीता 2।6) इति यत् अवोचः? तदपि द्रष्टुं यदि इच्छसि।।किन्तु --,
Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka
।।11.7।।केवल इतना ही नहीं --, हे गुडाकेश अब तू मेरे इस शरीरमें एक ही स्थानमें स्थित चराचरसहित सारे जगत्को देख ले। तथा और भी जो कुछ जयपराजय आदि दृश्य जिसके लिये तू हम उनको जीतेंगे या वे हमको जीतेंगे इस प्रकार शङ्का करता था? वह सब या अन्य जो कुछ यदि देखना चाहता हो तो देख ले।