किं पुनर्ब्राह्मणाः पुण्या भक्ता राजर्षयस्तथा।
अनित्यमसुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम्।।9.33।।
श्रीमद् भगवद्गीता
मूल श्लोकः
Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya
।।9.33।। --,किं पुनः ब्राह्मणाः पुण्याः पुण्ययोनयः भक्ताः राजर्षयः तथा राजानश्च ते ऋषयश्च इति राजर्षयः। यतः एवम्? अतः अनित्यं क्षणभङ्गुरम् असुखं च सुखवर्जितम् इमं लोकं मनुष्यलोकं प्राप्य पुरुषार्थसाधनं दुर्लभं मनुष्यत्वं लब्ध्वा भजस्व सेवस्व माम्।।कथम् --,
Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka
।।9.33।।फिर जो पुण्ययोनि ब्राह्मण और राजर्षि भक्त हैं उनका तो कहना ही क्या है जो राजा भी हों और ऋषि भी हों? वे राजर्षि कहलाते हैं। क्योंकि यह बात है? इसलिये इस अनित्य? क्षणभङ्गुर और सुखरहित मनुष्यलोकको पाकर अर्थात् परम पुरुषार्थके साधनरूप दुर्लभ मनुष्यशरीरको पाकर मुझ ईश्वरका ही भजन कर -- मेरी ही सेवा कर।