अपि चेदसि पापेभ्यः सर्वेभ्यः पापकृत्तमः।
सर्वं ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं सन्तरिष्यसि।।4.36।।
श्रीमद् भगवद्गीता
मूल श्लोकः
Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya
।।4.36।। अपि चेत् असि पापेभ्यः पापकृद्भ्यः सर्वेभ्यः अतिशयेन पापकृत् पापकृत्तमः सर्वं ज्ञानप्लवेनैव ज्ञानमेव प्लवं कृत्वा वृजिनं वृजिनार्णवं पापसमुद्रं संतरिष्यसि। धर्मोऽपि इह मुमुक्षोः पापम् उच्यते।।ज्ञानं कथं नाशयति पापमिति दृष्टान्त उच्यते
Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka
।।4.36।।इस ज्ञान का माहात्म्य क्या है ( सो सुन ) यदि तू पाप करने वाले सब पापियों से अधिक पाप करनेवाला अति पापी भी है तो भी ज्ञानरूप नौका द्वारा अर्थात् ज्ञान को ही नौका बनाकर समस्त पापरूप समुद्रसे अच्छी तरह पार उतर जायगा। यहाँ मुमुक्षु के लिये धर्म भी पाप ही कहा जाता है।