वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा-
न्यन्यानि संयाति नवानि देही।।2.22।।
श्रीमद् भगवद्गीता
मूल श्लोकः
Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya
।।2.22।।
वासांसि वस्त्राणि जीर्णानि दुर्बलतां गतानि यथा लोके विहाय परित्यज्य नवानि अभिनवानि गृह्णाति उपादत्ते नरः पुरुषः अपराणि अन्यानि तथा तद्वदेव शरीराणि विहाय जीर्णानि अन्यानि संयाति संगच्छति नवानि देही आत्मा पुरुषवत् अविक्रिय एवेत्यर्थः।।
कस्मात् अविक्रिय एवेति आह
Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka
।।2.22।।अब हम प्रकृत विषय वर्णन करेंगे। यहाँ ( प्रकरणमें ) आत्माके अविनाशित्वकी प्रतिज्ञा की गयी है वह किसके सदृश है सो कहा जाता है
जैसे जगत्में मनुष्य पुरानेजीर्ण वस्त्रोंको त्याग कर अन्य नवीन वस्त्रोंको ग्रहण करते हैं वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरको छोड़कर अन्यान्य नवीन शरीरोंको प्राप्त करता है। अभिप्राय यह कि ( पुराने वस्त्रोंको छोड़कर नये धारण करनेवाले ) पुरुषकी भाँति जीवात्मा सदा निर्विकार ही रहता है।