तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्य भरतर्षभ।
पाप्मानं प्रजहि ह्येनं ज्ञानविज्ञाननाशनम्।।3.41।।
श्रीमद् भगवद्गीता
।।3.41।। तस्मात् त्वम् इन्द्रियाणि आदौ पूर्वमेव नियम्य वशीकृत्य भरतर्षभ पाप्मानं पापाचारं कामं प्रजहिहि परित्यज एनं प्रकृतं वैरिणं ज्ञानविज्ञाननाशनं ज्ञानं शास्त्रतः आचार्यतश्च आत्मादीनाम् अवबोधः विज्ञानं विशेषतः तदनुभवः तयोः ज्ञानविज्ञानयोः श्रेयःप्राप्तिहेत्वोः नाशनं नाशकरं प्रजहिहि आत्मनः परित्यजेत्यर्थः।।इन्द्रियाण्यादौ नियम्य कामं शत्रुं जहिहि इत्युक्तम् तत्र किमाश्रयः कामं जह्यात् इत्युच्यते
।।3.41।।जब कि ऐसा है इसलिये हे भरतर्षभ तू पहले इन्द्रियोंको वशमें करके ज्ञान और विज्ञानके नाशक इस ऊपर बतलाये हुए वैरी पापाचारी कामका परित्याग कर। अभिप्राय यह कि शास्त्र और आचार्यके उपदेशसे जो आत्माअनात्मा और विद्याअविद्या आदि पदार्थोंका बोध होता है उसका नाम ज्ञान है एवं उसका जो विशेषरूपसे अनुभव है उसका नाम विज्ञान है अपने कल्याणकी प्राप्तिके कारणरूप उन ज्ञान और विज्ञानको यह काम नष्ट करनेवाला है इसलिये इसका परित्याग कर।