एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः।
स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप।।4.2।।
श्रीमद् भगवद्गीता
मूल श्लोकः
Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka
।।4.2।।इस प्रकार क्षत्रियोंकी परम्परासे प्राप्त हुए इस योगको राजर्षियोंने जो कि राजा और ऋषि दोनों थे जाना। हे परंतप ( अब ) वह योग इस मनुष्यलोकमें बहुत कालसे नष्ट हो गया है। अर्थात् उसकी सम्प्रदायपरम्परा टूट गयी है। अपने विपक्षियोंको पर कहते हैं उन्हें जो शौर्यरूप तेजकी किरणोंके द्वारा सूर्यके समान तपता है वह पपातप यानी शत्रुओंको तपानेवाला कहा जाता है।