योगी युञ्जीत सततमात्मानं रहसि स्थितः।
एकाकी यतचित्तात्मा निराशीरपरिग्रहः।।6.10।।
श्रीमद् भगवद्गीता
मूल श्लोकः
Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka
।।6.10।।अतः ऐसे उत्तम फलकी प्राप्तिके लिये ध्यान करनेवाला योगी अकेला किसीको साथ न लेकर पहाड़की गुफा आदि एकान्त स्थानमें स्थित हुआ निरन्तर अपने अन्तःकरणको ध्यानमें स्थिर किया करे। एकान्त स्थानमें स्थित हुआ और अकेला इन विशेषणोंसे यह भाव पाया जाता है कि संन्यास ग्रहण करके योगका साधन करे। जिसका चित्त अन्तःकरण और आत्मा शरीर ( दोनों ) जीते हुए हैं ऐसा यतचित्तात्मा निराशी तृष्णाहीन और संग्रहरहित होकर अर्थात् संन्यासी होनेपर भी सब संग्रहका त्याग करके योगका अभ्यास करे।