योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना।
श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः।।6.47।।
श्रीमद् भगवद्गीता
मूल श्लोकः
Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka
।।6.47।।रुद्र आदित्य आदि देवोंके ध्यानमें लगे हुए समस्त योगियोंसे भी जो योगी श्रद्धायुक्त हुआ मुझ वासुदेवमें अच्छी प्रकार स्थित किये हुए अन्तःकरणसे मुझे ही भजता है उसे मैं युक्ततम अर्थात् अतिशय श्रेष्ठ योगी मानता हूँ।