जितात्मनः प्रशान्तस्य परमात्मा समाहितः।
शीतोष्णसुखदुःखेषु तथा मानापमानयोः।।6.7।।
श्रीमद् भगवद्गीता
मूल श्लोकः
Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka
।।6.7।।जिसने मन इन्द्रिय आदिके संघातरूप इस शरीरको अपने वशमें कर लिया है और जो प्रशान्त है जिसका अन्तःकरण सदा प्रसन्न रहता है उस संन्यासीको भली प्रकारसे सर्वत्र परमात्मा प्राप्त है अर्थात् साक्षात् आत्मभावसे विद्यमान है। तथा वह सर्दीगर्मी और सुखदुःखमें एवं मान और अपमानमें यानी पूजा और तिरस्कारमें भी ( सम हो जाता है )।