येषां त्वन्तगतं पापं जनानां पुण्यकर्मणाम्।
ते द्वन्द्वमोहनिर्मुक्ता भजन्ते मां दृढव्रताः।।7.28।।
श्रीमद् भगवद्गीता
मूल श्लोकः
Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka
।।7.28।।तो फिर इस द्वन्द्वमोहसे छूटे हुए ऐसे कौनसे मनुष्य हैं जो आपको शास्त्रोक्त प्रकारसे आत्मभावसे भजते हैं इस अपेक्षित अर्थको दिखानेके लिये कहते हैं जिन पुण्यकर्मा पुरुषोंके पापोंका लगभग अन्त हो गया होता है अर्थात् जिनके कर्म पवित्र यानी अन्तःकरणकी शुद्धिके कारण होते हैं वे पुण्यकर्मा हैं ऐसे उपर्युक्त द्वन्द्वमोहसे मुक्त हुए वे दृढ़व्रती पुरुष मुझ परमात्माको भजते हैं। परमार्थतत्त्व ठीक इसी प्रकार है दूसरी प्रकार नहीं ऐसे निश्चित विज्ञानवाले पुरुष दृढ़व्रती कहे जाते हैं।