अपरेयमितस्त्वन्यां प्रकृतिं विद्धि मे पराम्।
जीवभूतां महाबाहो ययेदं धार्यते जगत्।।7.5।।
श्रीमद् भगवद्गीता
मूल श्लोकः
Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka
।।7.5।।यह ( उपर्युक्त ) मेरी अपरा प्रकृति है अर्थात् परा नहीं किंतु निकृष्ट है अशुद्ध है और अनर्थ करनेवाली है एवं संसारबन्धनरूपा है। और हे महाबाहो इस उपर्युक्त प्रकृतिमें दूसरी जीवरूपा अर्थात् प्राणधारणकी निमित्त बनी हुई जो क्षेत्रज्ञरूपा प्रकृति है अन्तरमें प्रवृष्ट हुई जिस प्रकृतिद्वारा यह समस्त जगत् धारण किया जाता है उसको तू मेरी परा प्रकृति जान अर्थात् उसे मेरी आत्मरूपा उत्तम और शुद्ध प्रकृति जान।