निश्चयं श्रृणु मे तत्र त्यागे भरतसत्तम।
त्यागो हि पुरुषव्याघ्र त्रिविधः संप्रकीर्तितः।।18.4।।
श्रीमद् भगवद्गीता
।।18.4।।इन विकल्पभेदोंमें --, हे भरतवंशियोंमें श्रेष्ठतम अर्जुन उस पूर्वदर्शित त्यागके विषयमें? अर्थात् त्यागसंन्यास सम्बन्धी विकल्पोंके विषयमें? तू मेरा निश्चय सुन? अर्थात् मेरे वचनोंसे कहा हुआ तत्त्व भली प्रकार समझ। त्याग और संन्यासशब्दका जो वाच्यार्थ है वह एक ही है? इस अभिप्रायसे केवल त्यागके नामसे ही,( प्रश्नका ) उत्तर देते हैं। हे पुरुषसिंह ( उस ) त्यागका शास्त्रोंमें तामस आदि तीन प्रकारके भेदोंसे भली प्रकार निरूपण किया गया है। जिससे कि आत्मज्ञानरहित कर्माधिकारी -- कर्मी पुरुषका ही त्यागसंन्यासशब्दका वाच्यार्थ ( संन्यास ) तामस आदि भेदोंसे तीन प्रकारका होना सम्भव है? परमार्थज्ञानी नहीं यह अभिप्राय समझमें आना बड़ा कठिन है? इसलिये इस विषयमें यथार्थ तत्त्व बतलानेको दूसरा कोई समर्थ नहीं है? अतः तू मुझ ईश्वरका शास्त्रोंके यथार्थ अभिप्रायसे युक्त निश्चय सुन।