यदा ते मोहकलिलं बुद्धिर्व्यतितरिष्यति।
तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च।।2.52।।
श्रीमद् भगवद्गीता
मूल श्लोकः
Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka
।।2.52।।योगानुष्ठानजनित सत्त्वशुद्धिसे उत्पन्न हुई बुद्धि कब प्राप्त होती है इसपर कहते हैं
जब तेरी बुद्धि मोहकलिलको अर्थात् जिसके द्वारा आत्मानात्मके विवेकविज्ञानको कलुषित करके अन्तःकरण विषयोंमें प्रवृत्त किया जाता है उस मोहात्मक अविवेककालिमाको उल्लङ्घन कर जायगी अर्थात् जब तेरी बुद्धि बिल्कुल शुद्ध हो जायगी।
तब उस समय तू सुननेयोग्यसे और सुने हुएसे वैराग्यको प्राप्त हो जायगा। अर्थात् तब तेरे लिये सुननेयोग्य और सुने हुए ( सब विषय ) निष्फल हो जायँगे यह अभिप्राय है।