न रूपमस्येह तथोपलभ्यते
नान्तो न चादिर्न च संप्रतिष्ठा।
अश्वत्थमेनं सुविरूढमूल
मसङ्गशस्त्रेण दृढेन छित्त्वा।।15.3।।
श्रीमद् भगवद्गीता
मूल श्लोकः
Hindi Translation By Swami Tejomayananda
।।15.3।। इस (संसार वृक्ष) का स्वरूप जैसा कहा गया है वैसा यहाँ उपलब्ध नहीं होता है, क्योंकि इसका न आदि है और न अंत और न प्रतिष्ठा ही है। इस अति दृढ़ मूल वाले अश्वत्थ वृक्ष को दृढ़ असङ्ग शस्त्र से काटकर ...৷৷৷৷।।