श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा।

तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसंभवम्।।10.41।।

 

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।10.41।। जो कोई भी विभूतियुक्त, कान्तियुक्त अथवा शक्तियुक्त वस्तु (या प्राणी) है, उसको तुम मेरे तेज के अंश से ही उत्पन्न हुई जानो।।
 

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।10.41।। --,यद्यत् लोके विभूतिमत् विभूतियुक्तं सत्त्वं वस्तु श्रीमत् ऊर्जितमेव वा श्रीर्लक्ष्मीः तया सहितम् उत्साहोपेतं वा? तत्तदेव अवगच्छ त्वं जानीहि मम ईश्वरस्य तेजोंऽशसंभवं तेजसः अंशः एकदेशः संभवः यस्य तत् तेजोंऽशसंभवमिति अवगच्छ त्वम्।।

अथवा बहुना एतेन एवमादिना किं ज्ञातेन तव अर्जुन स्यात् सावशेषेण। अशेषतः त्वम् उच्यमानम् अर्थं श्रृणु -- विष्टभ्य विशेषतः स्तम्भनं दृढं कृत्वा इदं कृत्स्नं जगत् एकांशेन एकावयवेन एकपादेन? सर्वभूतस्वरूपेण इत्येतत् तथा च मन्त्रवर्णः -- पादोऽस्य विश्वा भूतानि (तै0 आर0 3।12) इति स्थितः अहम् इति।।इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यस्य श्रीगोविन्दभगवत्पूज्यपादशिष्यस्य,श्रीमच्छंकरभगवतः कृतौ श्रीमद्भगवद्गीताभाष्ये

दशमोऽध्यायः।।,प

Hindi Commentary By Swami Chinmayananda

।।10.41।। इस अध्याय में कथित उदाहरणों के द्वारा भगवान् की विभूतियों को दर्शाने का अल्पसा प्रयत्न किया गया है? परन्तु यह नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने सत्य को पूर्णतया परिभाषित किया है। हमें यह बताया गया है कि हम विवेक के द्वारा इसी अनित्य जगत् में नित्य और दिव्य तत्त्व को पहचान सकते हैं। उपर्युक्त दृष्टान्तों से यह स्पष्ट होता है कि जगत् की चराचर वस्तुओं में स्वयं भगवान् अपने को ऐश्वर्ययुक्त? कान्तियुक्त अथवा शक्तियुक्त रूप में अभिव्यक्त करते हैं। वे समस्त नाम और रूपों में विद्यमान हैं।यहाँ श्रीकृष्ण अत्यन्त स्पष्ट रूप से यह बताते हैं कि बहुविध जगत् में दिव्य उपस्थिति क्या है? तथा उसे पहचानने की परीक्षा क्या है। जहाँ कहीं भी महानता? कान्ति या शक्ति की अभिव्यक्ति है? वह परमात्मा के असीम तेज की एक रश्मि ही है। इस में कोई सन्देह नहीं कि उपर्युक्त विस्तृत विवेचन का यह सारांश अपूर्व है। इन समस्त उदाहरणों में भगवान् का या तो ऐश्वर्य झलकता है? या कान्ति या फिर शक्ति।सर्वत्र परमात्मदर्शन करने के लिए अर्जुन को दिये गये इस संकेतक का उपयोग गीता के सभी विद्यार्थियों के लिए समान रूप से लाभप्रद होगा।अब अन्त में भगवान् कहते हैं

Sanskrit Commentary By Sri Abhinavgupta

।।10.19 -- 10.42।।हन्त ते कथयिष्यामीत्यादि जगत्स्थित इत्यन्तम्। अहमात्मा (श्लो. 20) इत्यनेन व्यवच्छेदं वारयति। अन्यथा स्थावराणां हिमालय इत्यादिवाक्येषु हिमालय एव भगवान् नान्य इति व्यवच्छेदेन? निर्विभागत्वाभावात् ब्रह्मदर्शनं खण्डितम् अभविष्यत्। यतो यस्याखण्डाकारा व्याप्तिस्तथा चेतसि न उपारोहति? तां च [यो] जिज्ञासति तस्यायमुपदेशग्रन्थः। तथाहि उपसंहारे ( उपसंहारेण) भेदाभेदवादं,यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वम् (श्लो -- 41) इत्यनेनाभिधाय? पश्चादभेदमेवोपसंहरति अथवा बहुनैतेन -- विष्टभ्याहमिदं -- एकांशेन जगत् स्थितः (श्लो -- 42) इति। उक्तं हि -- पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि।।इति -- RV? X? 90? 3प्रजानां सृष्टिहेतुः सर्वमिदं भगवत्तत्त्वमेव तैस्तेर्विचित्रै रूपैर्भाव्यमानं (S तत्त्वमेतैस्तैर्विचित्रैः रूपैः ? N -- विचित्ररूपै -- ) सकलस्य (S?N सकलमस्य) विषयतां यातीति।

English Translation of Abhinavgupta's Sanskrit Commentary By Dr. S. Sankaranarayan

10.41 See Comment under 10.42

English Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda

10.41 Yat yat, whatever; sattvam, object in the world; is eva, verily; vibhutimat, endowed with majesty; srimad, possessed of prosperity; va, or; is urjitam, energetic, possessed of vigour; tvam, you; avagaccha, know; eva, for certain; tat tat, each of them; as mama tejomsa-sambhavam, having a part (amsa) of My (mama), of God's, power (teja) as its source (sambhavam).

English Translation By Swami Gambirananda

10.41 Whatever object [All living beings] is verily endowed with majesty, possessed of prosperity, or is energetic, you know for certain each of them as having a part of My power as its source.