श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

भवाप्ययौ हि भूतानां श्रुतौ विस्तरशो मया।

त्वत्तः कमलपत्राक्ष माहात्म्यमपि चाव्ययम्।।11.2।।

 

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।11.2।। हे कमलनयन ! मैंने भूतों की उत्पत्ति और प्रलय आपसे विस्तारपूर्वक सुने हैं तथा आपका अव्यय माहात्म्य (प्रभाव) भी सुना है।।
 

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।11.2।। --,भवः उत्पत्तिः अप्ययः प्रलयः तौ भवाप्ययौ हि भूतानां श्रुतौ विस्तरशः मया? न संक्षेपतः? त्वत्तः त्वत्सकाशात्? कमलपत्राक्ष कमलस्य पत्रं कमलपत्रं तद्वत् अक्षिणी यस्य तव स त्वं कमलपत्राक्षः हे कमलपत्राक्ष? महात्मनः भावः माहात्म्यमपि च अव्ययम् अक्षयम् श्रुतम् इति अनुवर्तते।।

Hindi Commentary By Swami Chinmayananda

।।11.2।। गुरु और शिष्य के संवाद में? यह स्वाभाविक है कि किसी कठिन विषय की समाप्ति पर शिष्य के मन में कुछ शंका या प्रश्न उठें। उस शंका की निवृत्ति के लिए वह गुरु के पास जा सकता है? परन्तु प्रश्न करने के पूर्व उसे यह सिद्ध करना होगा कि वह विवेचित विषय को स्पष्टत समझ चुका है। तत्पश्चात्? उसे अपनी नवीन शंका का समाधान कराने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। इस पारम्परिक पद्धति का अनुसरण करते हुए अर्जुन भगवान् श्रीकृष्ण को यह बताने का प्रयत्न करता है कि वह पूर्व अध्याय का विषय समझ चुका है। उसने श्रवण के द्वारा भूतों की उत्पत्ति और प्रलय तथा भगवान् की असंख्य विभूतियों को समझ लिया है।फिर भी? एक संदेह रह ही जाता है? जिसका निवारण तभी होगा जब प्रात्यक्षिक दर्शन से उसकी बुद्धि को तत्त्व का निश्चयात्मक ज्ञान हो जायेगा। यह श्लोक विश्वरूप दर्शन की इच्छा को प्रगट करने की पूर्व तैयारी है। जब शिष्य अपनी योग्यता सिद्ध करने के पश्चात् कोई युक्तिसंगत प्रश्न पूछता है अथवा किसी संभावित विघ्न की निवृत्ति का उपाय जानना चाहता है?तो गुरु को उसकी सभी सम्भव सहायता करनी चाहिये। हम देखेंगे कि योगेश्वर श्रीकृष्ण यहाँ अपनी वरिष्ठता को भी त्याग कर केवल असीम अनुकम्पावशात् अर्जुन को अपना विराट् रूप दर्शाते हैं? केवल इसलिए कि उनके शिष्य ने उसे देखने का आग्रह किया था।अर्जुन अपनी इच्छा को अगले श्लोक में व्यक्त करता है।

Sanskrit Commentary By Sri Abhinavgupta

।।11.2।।No commentary.

English Translation of Abhinavgupta's Sanskrit Commentary By Dr. S. Sankaranarayan

11.2 Sri Abhinavagupta did not comment upon this sloka.

English Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda

11.2 Kamala-partraksa, O You with eyes like lotus leaves; bhava-apyayau, the origin and dissolution- these two; bhutanam, of beings; srutau, have been heard; maya, by me; vistarasah, in detail-not in brief; tvattah, from You. Ca, and; (Your) avyayam, undecaying; mahatmyam, glory, too;-has been heard-(these last words) remain understood.

English Translation By Swami Gambirananda

11.2 O you with eyes like lotus leaves, the origin and dissolution of beings have been heard by me in detail from You. ['From You have been heard the origin and dissolution of beings in You.'] And (Your) undecaying glory, too, (has been heard).